निराला कृत 'तुलसीदास' - कतिपय अंश
भारत के नभ का प्रभापूर्य
शीतलच्छाय सांस्कृतिक सूर्य
अस्तमित आज रे - तमस्तूर्य दिड्.मण्डल;
उर के आसन पर शिरस्त्राण
शासन करते हैं मुसलमान;
है ऊर्मिल जल, निश्चलत्प्राण पर शतदल। (1)
युवकों में प्रमुख रत्न-चेतन
समधीत-शास्त्र-काव्यालोचन
जो, तुलसीदास, वही ब्राह्मण-कुल-दीपक;
आयत-दृग, पुष्ट-देह, गत-भय,
अपने प्रकाश में नि:संशय
प्रतिभा का मन्द-स्मित परिचय, संस्मारक। (12)
वह रत्नावली, नाम-शोभन
पति-रति में प्रतनु, अत: लोभन
अपरिचित-पुण्य अक्षय क्षोभन धन कोई;
प्रियकरालम्ब को सत्य-यष्टि;
प्रतिमा में श्रद्धा की समष्टि;
मायायन में प्रिय-शयन व्यष्टि भर सोयी। (58)
बिखरी छूटीं शफरी-अलकें,
निष्पात नयन-नीरज पलकें,
भावातुर पृथु उर की छलकें उपशमिता,
नि:सम्बल केवल ध्यान-मग्न,
जागी योगिनी अरूप-लग्न,
वह खड़ी शीर्ण प्रिय-भाव-मग्न निरुपमिता। (83)
"धिक! धाये तुम यों अनाहूत,
धो दिया श्रेष्ठ कुल-धर्म धूत,
राम के नहीं, काम के सूत कहलाये!
हो बिके जहाँ तुम बिना दाम,
वह नहीं और कुछ-हाड़, चाम!
कैसी शिक्षा, कैसे विराम पर आये!" (85)
जागा, जागा संस्कार प्रबल,
रे गया काम तत्क्षण वह जल,
देखा, वामा, वह न थी, अनल-प्रतिमा वह;
इस ओर ज्ञान, उस ओर ज्ञान,
हो गया भस्म वह प्रथम भान,
छूटा जग का जो रहा ध्यान, जड़िमा वह। (86)
- निराला
अक्षर संयोजन : के. नागेश्वर राव
नये ब्लाग के लिए शुभकामनाएँ
ReplyDeleteदिल्ली से भाई भीमबली लिखते हैः
ReplyDeleteरामायण संदर्शन’ के अंक प्राप्त हुए, धन्यवाद। रामहिं केवल प्रेम पियारा तथा जनकपुर की अनिर्वचनीय शोभा- श्री राम विवाह आलेख सुन्दर बन पडे हैं। विनय पत्रिका: राम को प्रेषित तुलसी का प्रार्थना पत्र में गोस्वामी तुलसीदास के जीवन संघर्ष की चर्चा की गई है। समाज सुधारकों को अनेक कष्टों का सामना करना पडता है। गौनेबुद्ध रेड्डी कृत रंगनाथ रामायण लेख से तेलुगु में रचित रामायण की जानकारी मिली। हर प्रदेश में राम कथा के अलग-अलग पाठ हैं। तुलसी से इतर रामायणों की बहुत कम जानकारी जनता के बीच है जिसका फायदा कट्टरपंथी उठाते हैं। अन्य कोई पाठ/भाष्य पढना वे स्वीकार नहीं करते।