हैदराबाद.
महाकवि संत तुलसीदास की 511 वीं जयंती के संदर्भ में ‘रामायण संदर्षन’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में निजामाबाद वासी रामायण प्रचारक सारडा-बंधुओं को रामायण तुलसी सम्मान प्रदान किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. ऋषभदेव शर्मा ने की तथा संचालन हरिहरदास तुलस्यान ने किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए डाॅ. गोपाल शर्मा ने कहा कि वर्तमान समय में जबकि राम और रामकथा की ऐतिहासिकता को लेकर भावना से न्यायालय तक में वाद-विवाद चल रहे हैं, ऐसे में तुलसी कृत रामचरितमानस सब विवादों का मानवतावादी समाधान सुझाने में समर्थ महाकाव्य है। उन्होंने बल देकर कहा कि रामकथा को अनेकानेक भाषाओं में अनेक कवियों ने अपनी-अपनी परिस्थिति और रुचि के अनुसार परिवर्तित करके लिखा है परंतु इतने मात्र से उसकी ऐतिहासिकता भंग नहीं हो सकती। इन सबके बीच तुलसी की रचना आज सर्वाधिक प्रासंगिक इसलिए भी है कि उसमें मानव जीवन को श्रेष्ठतर बनाने वाले मूल्यों और आदर्षाें को राम के चरित्र के माध्यम से संपे्रषित करने की शक्ति विद्यमान है।
आरंभ में मंगलाचरण के साथ रामचरितमानस के उत्तरकांड के संपूर्ण रामकथा विषय अंषों का सस्वर सामूहिक वाचन किया गया। भीषण वर्षा के कारण स्वतंत्र वार्ता के संपादक डाॅ. राधेष्याम शुक्ल का संदेष मोबाइल के माध्यम से सुनवाया गया। डाॅ. शुक्ल ने कहा कि तुलसी की कालजयी प्रतिभा ने मध्यकाल में भारतीय पौरुष के पुंज के रूप में अपने चरित नायक राम की मौलिक उद्भावना की थी और पहली बार रामकथा को व्यापक सामाजिक सरोकारों के साथ जोड़ा था।
संत तुलसीदास का स्मरण करते हुए डाॅ. बी. बालाजी ने उनके राजनीति विषयक आदर्षों की चर्चा की तथा षिवकुमार राजौरिया ने उनके चरित नायक राम की लोक के प्रति गहरी आसक्ति की ओर ध्यान दिलाया।
सारडा-बंधु ने रामायण तुलसी सम्मान स्वीकार करते हुए कहा कि रामचरित ने लाखों, करोडों लोगों का उद्धार किया है तथा उसमें निहित षिक्षाएँ आज भी संपूर्ण मानव जाति का कल्याण करने में समर्थ है इसीलिए तुलसीदास कृत राम के आदर्ष चरित्र के आज सारे संसार में प्रचार की आवष्यकता है।
तुलसी जयंती के अवसर पर सिटी प्रगति स्कूल के छात्रों के चार वर्गों के बीच ‘मानस अंत्याक्षरी प्रतियोगिता’ आयोजित की गई। प्रतियोगिता में ‘राम’ समूह को प्रथम स्थान मिला जिसमें कक्षा दस के छात्र दिनेष शर्मा, प्रतीक अग्रवाल और नम्रता यादव के नाम सम्मिलित हैं।
अध्यक्ष के रूप में संबोधित करते हुए डाॅ. ऋषभदेव शर्मा ने तुलसीदास के जीवन संघर्ष के विविध प्रसंगों पर चर्चा की और कहा कि जीवन के अनुभवों से जुड़े होने के कारण रामचरितमानस अनेक मर्मस्पर्षी घटनाओं और विवरणों से परिपूर्ण है जिन्हें फिर-फिर पढ़ कर आज भी हमें संजीवनी शक्ति और प्रेरणा प्राप्त होती है जो तुलसी के कालजयी होने का आधार है।
कार्यक्रम के अंत में प्रसाद वितरण किया गया तथा पंडित प्रकाष शर्मा ने धन्यवाद प्रकट किया।
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