चौदहवीं शताबदी में सिद्धेश्वर पांडा नामक वैश्य ने सरला दास नाम से संस्कृत ग्रंथों को उडिया में लाने का स्तुत्य कार्य किया। उन्होंने महाभारत, चंडी पुराण, रामायण जैसी कथाओं की रचना की, जिसके कारण उन्हें ‘उत्कल वाल्मीकि’ कहा जाता है। अर्जुन दास नामक कवि ने ‘राम बिबाह’ की रचना की जिसे उडिया की प्रथम लंबी कविता माना जाता है।
पंद्रहवीं शताब्दी के पाँच साहित्यकारों ने संस्कृत भाषा के साहित्य का निचोड़ उडिया भाषा को दिया जिसके कारण इन रचनाकारों को ‘पंच सखा’ के नाम से उत्कल साहित्य में जाना जाता है। ये पाँच साहित्यकार हैं - बलराम दास, जगन्नाथ दास, अनंत दास, यशोवंत दास और अच्युतानंद दास। बलराम दास ने रामायण और महाभारत की रचना की जबकि जगन्नाथ दास ने भागवत पुराण की। बलराम दास की इस रामायण को ‘जगमोहन रामायण’ कहा जाता है।
बलराम दास (1472) वैष्णव भक्त थे जिन्होंने जीवन भर भगवान जगन्नाथ की आराधना की। उस समय वे चैतन्य महाप्रभु के संपर्क में भी आए। अपनी भक्ति को लेखन के माध्यम से उन्होंने लगभग बीस कृतियों में संजोया जिनमें श्रीमद्भगवद्गीता, उद्धव गीता, ब्रह्मानंद भूगोल, अमरकोश गीता और भाव समुद्र उल्लेखनीय हैं। चूंकि वे भगवान जगन्नाथ के भक्त थे, उन्होंने अपनी कृति का नाम ‘जगमोहन रामायण’ रखा जिसमें जगन्नाथ, मोहन तथा राम का मिश्रण है।
‘जगमोहन रामायण’ में संत वाल्मीकि की रामायण का ही ढाँचा रखा गया है, जिसमें राम के जन्म से लेकर बैकुण्ठ सिघारने तक का वर्णन है। रचना का आरंभ पुरी के प्रभु जगन्नाथ जी की लंबी स्तुति से होता है। फिर शिव-पार्वती संवाद जोड़े गए हैं जो वाल्मीकि रामायण में नहीं मिलते। यहाँ ब्रह्मा और शिव की रोचक कहानी मिलती है।
एक दिन ब्रह्माजी शिवजी से मिलने कैलाश पहुँचे तो शिवजी को अस्वस्थ पाया। शिवजी अपनी अस्वस्थता से चिंतित थे। उन्होंने ब्रह्माजी से इसका कारण और निवारण पूछा। ब्रह्माजी ने बताया कि यह दक्ष प्रजापति के यज्ञ में विघ्न डालने का परिणाम है। इसका एकमात्र उपचार यह है कि दिन-रात राम-नाम जपें। राम-नाम के जपने से शिवजी स्वस्थ हो गए। एक रोज़ पार्वती जी को उन्होंने अपने स्वस्थ होने का उपचार कह सुनाया। पार्वतीजी के मन में पूर्ण राम-कथा सुनने की उत्कंठा जागी। उन्होंने शिवजी से अनुरोध किया तो शिवजी ने बताया कि राम का नाम विष्णु जी के सहस्र नामों में सबसे उत्तम नाम है। इस तरह उन्होंने पार्वतीजी को राम-कथा सुनाई। इस कथा के माध्यम से बलराम दास ने वाल्मीकि के महामानव राम को भगवान विष्णु के अवतार राम में रूपांतरित कर दिया।
बलराम दास ने अपनी रामायण के सभी पात्रों को वैष्णव देवी-देवताओं का अंश बताते हुए इस कथा का वैष्णवीकरण किया। ऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र, भरद्वाज, अत्रि, अगस्त्य आदि ने राम के जन्म लेने पर विष्णु, नारायण और परब्रह्म कहकर उनकी स्तुति की। विभीषण, रावण, सुक, सारन और मारीच भी जानते थे कि राम के रूप में भगवान विष्णु हैं ।
‘जगमोहन रामायण’ की घटनाओं में भी बलराम दास ने देवी-देवताओं का सहारा लिया है। राम के राज्याभिषेक के समय देवताओं ने खल और दुर्बल को स्वर्ग से इसलिए भेजा ताकि वे कैकेयी के मन में दुर्भाव भर दें और राजा दशरथ के मनोबल को क्षीण कर सकें। गोमाता सुरभि पहले से ही मंथरा बनी बैठी थी। ब्रह्माजी के कहने पर सरस्वती देवी भी राजा दशरथ को प्रभावित करने के लिए अयोध्या में वास कर रही थी। सीता-स्वयंवर में रावण को क्रोध में लाने के लिए देवता उपहास करने के लिए उपस्थित थे। देवी-देवताओं को इस कथा में लाने का अभिप्राय यह था कि विष्णु के अवतार राम की ख्याति बढ़े। जहाँ-तहाँ बलराम दास ने अपनी रामायण में ओडिशा के कुछ पुण्य स्थल भी जोड़कर यह बताया कि रामजी इन स्थलों की यात्रा कर चुके हैं; जैसे राम की पुरी, जजपुर, कोणार्क, भुवनेश्वर आदि। प्राची, ऋषिकल्या, चित्रोत्पल जैसी नदियों में राम के स्नानादि का वर्णन मिलता है।
इस प्रकार बलराम दास ने कथा को उड़िया जनमानस से जोड़ा और वैष्णव मत के भक्ति मार्ग को प्रशस्त करने का माध्यम बनाया।
उस काल में शैव-वैष्णव मैत्री को प्रगाढ़ बनाए रखने के लिए शिव और राम के एक-दूसरे के प्रति स्नेह व श्रद्धा को दर्शाया है। बलराम दास ने कुछ ऐसी कथाएँ भी ‘जगमोहन रामायण’में जोड़ दी हैं जिनसे उड़िया आदिवासियों का राम के प्रति स्नेह व प्रेम बने। शबर जाति के आदिवासी जगन्नाथ जी के आराधक हैं। जब सीता-राम-लक्ष्मण चित्रकूट जा रहे थे तो वे शबरी के गाँव से गुज़रे। सीताहरण के बाद रामजी जब सीता की खोज में इस शबर वासियों के ग्राम पहुँचे तो एक नारी ने उन्हें आम खिलाए और उन्हें खिलाने के पहले वह चूस-चूस कर देखती कि आम मीठे हैं या नहीं।
बलराम दास ने पुराण तथा अन्य संस्कृत काव्य, नाटक एवं लोककथाओं को ‘जगमोहन रामायण’ में जोड़कर उड़िया के सभी वर्ग के लोगों के लिए लोकप्रिय कृति की रचना की। उन्होंने अहल्या की कथा ब्राह्मण ग्रंथ से ली और कुछ अंश ब्रह्मवैवर्त पुराण, रघुवंश तथा अध्यात्म रामायण के भी जोडे़।
बलराम दास का मानना था कि ‘जगमोहन रामायण’ के असली रचनाकार तो भगवान जगन्नाथ हैं और वे स्वयं तो निमित्त मात्र हैं क्योंकि उन्होंने तो जगन्नाथ जी के कहे को लिखा है। आज भी ‘जगमोहन रामायण’ उड़िया भाषा की उत्कृष्ट कृति मानी जाती है जिसे उड़िया जन बड़े आदर से पढ़ते और सुनते हैं।
- चंद्र मौलेश्वर प्रसाद
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