रामायण संदर्शन

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Monday, December 8, 2008

दिसम्बर २००८ : आलेख : हनुमान का सूचना-प्रबंधन कौशल

हनुमान का सूचना-प्रबंधन कौशल
योजना बनाना, नेतृत्व प्रदान करना, संगठन बनाना, सामंजस्य स्थापित करना , सम्प्रेषण करना तथा नियन्त्रण करना आदि प्रमुख प्रबंधकीय कार्य है। बुद्धिमान व्यक्ति कठिन परिस्थितियों तथा सीमित साधनों से भी ये कार्य बखुबी कर लेता है, वहीं मूर्ख हथियार डाल देता है तथा असफल हो जाता है। रामकथा से एक प्रसंग लें और देखें कि किस प्रकार सीमित साधनों से हनुमानजी ने प्रभावी रूप से अपना संदेश सुग्रीव के पास भेजा। सम्पूर्ण सामग्री श्रीरामचरितमानस के किष्किन्धा कांड पर आधारित है।


राम वनवास में हैं। रावण ने सीता का अपहरण कर लिया। श्रीराम - लक्ष्मण सीता को खोजते आगे हुए ऋष्ययूक पर्वत के निकट पहुंच गए हैं - ‘आगे चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्वत निअराया॥’ ऋष्यमूक पर्वत पर वानरराज सुग्रीव अपने मंत्रियों और सहायकों के साथ निवास कर रहे हैं। सुग्रीव का भाई बाली सुग्रीव से कुपित है। वह सुग्रीव के लिए निरापद है। राम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक पर्वत के निकट देख सुग्रीव आशंकित हो जाते है। श्रीराम और लक्ष्मण देखने से ही बलवान और आयुधों से युक्त हैं। सुग्रीव को लगता है कि शायद बाली ने ही इन बलशाली पुरुषों को मेरे वध के लिए भेजा है। वह ऋष्यमूक पर्वत छोड़ तत्काल भाग जाना चाहता है - ‘भागौं तुरत तजौं यह सैला।’ परंतु भागने के लिए वह सच्चाई जान लेना चाहता है। वह अपने मंत्री हनुमानजी को श्रीराम-लक्ष्मण के पास यह जानने के लिए भेजता है कि आखिर ये हैं कौन और यहां क्यों आये हैं?


हनुमानजी ब्राह्मण के वेश में श्रीराम-लक्ष्मण के पास पहुंचते हैं। बातचीत करके हनुमानजी आश्वस्त होते हैं कि श्रीराम और लक्ष्मण आदरणीय और सज्जन लोग हैं और ये मेरे राजा सुग्रीव के मददगार भी हो सकते हैं। सुग्रीव से इनका कार्य और इनसे सुग्रीव का कार्य सिद्ध हो सकता है। इधर सुग्रीव घबराया हुआ दूर से ही श्रीराम, लक्ष्मण और हनुमानजी को बातचीत करते देख रहा है। एक-एक क्षण उस समय सुग्रीव के लिए भारी हो रहा है।


हनुमानजी तत्काल सुग्रीव को संदेश भेजना चाहते हैं कि चिंता की कोई बात नहीं है। वे वहां से चिल्ला नहीं सकते। चिल्लाना असभ्यता होती और शायद आवाज भी सुग्रीव तक न पहुंचती। अन्य किसी प्रकार से संदेश भेजना, जो श्रीराम को भी ज्ञात हो जाए, श्रीराम के मन में सुग्रीव की प्रतिष्ठा गिरा सकता था। संचार के कोई आधुनिक साधन थे नहीं। उपलब्ध साधनों से ही हनुमानजी को संदेश भेजना था, जिससे सुग्रीव तत्काल चिन्तामुक्त हो जाएं, श्रीराम पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव न पडे तथा न कोई हास्यास्पद स्थिति निर्मित हो। दूर खडे़ सुग्रीव मात्र देख सकते हैं, सुन नहीं सकते। इशारा भी ससुभ्य एवं स्पष्ट होना चाहिये।


ऐसे में संदेश भेजने के लिए हनुमानजी अपने शरीर का प्रयोग करते हैं। वे श्रीराम को साष्टांग प्रणाम कर सकते हैं। इतना बडा व्यक्ति यदि ज़मीन पर लेट कर प्रणाम करेगा तो वह दूर से सुग्रीव को दिखेगा ही, परंतु यहां एक खतरा भी है - दूर से देख रहे सुग्रीव गलत निष्कर्ष भी निकाल सकते थे। वे इस निष्कर्ष पर भी पहूच सकते थे कि आगन्तुक अत्यन्त शक्तिशाली है, यहां तक कि हनुमानजी झुक गए तो सुग्रीव की तो खैर ही नहीं । साष्टांग प्रणाम दो विरोधी संदेश भेज सकते थे - पहला आगन्तुक आदरणीय है तथा दूसरा हनुमानजी आगन्तुकों के सामने भयभीत हो नतमस्तक हो गए हैं।


संदेश ठीक-ठीक पहुंचे, इसलिए हनुमानजी श्री राम-लक्ष्मण को अपने कंधे पर बैठाकर चल पडते हैं। कन्धे पर हनुमानजी ने भय वश नहीं बिठाया है। अब संदेश एकदम स्पष्ट है- आगन्तुक पूज्य हैं तथा मित्रवत एवं निरापद हैं।


बुद्धिमान व्यक्ति उपलब्ध एवं सीमित साधनों से ही अपना मन्तव्य प्रभावी रूप से गन्तव्य तक भॆज सकता है। शान्त, प्रखर और जाग्रत-बुद्धि प्रत्येक स्थिति में मार्ग निकाल लेती है, अतः अपने सहायक इसी प्रकार के लोग रखने चाहिए। जो संसाधनों की कमी के कारण निराश हो जाए, हथियार डाल दे, वह प्रभावी नहीं हो सकता। संसाधनों की कमी की पूर्ति बुद्धि-सामर्थ्य से कर लेनी चाहिए।

********* ********* स्वतंत्र वार्ता [६ दिसम्बर २००८] से साभार

5 comments:

  1. बहुत अच्छी जानकारी

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  3. पूर्णत: ज्ञानर्वधक पोस्ट.आपने बिल्कुल ही नवीन दृष्टिकोण से इसको
    प्रस्तुत किया है.

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  4. आधुनिक परिपेक्ष्य मे आपने बिल्कुल सही विष्लेषण किया है ! हनुमान जी को शायद इसी प्रबंधन क्षमता के कारण ही भगवान राम ने सारे अहम कार्य उनको ही सौंपे और लंका विजय के बाद भी उनको अयोध्या ले गये !

    और भी घटनाओ पर प्रकाश डालने की क्रुपा करियेगा !

    राम राम !

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  5. अशोक मधुप जी, पं. डी के शर्मा वत्स जी एवं ताऊ राम पुरिया जी,

    'रामायण संदर्शन' की सामग्री के अवलोकन और उस पर सम्मति व्यक्त करने के लिए हम आप के प्रति आभारी हैं.

    जय राम जी की.

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