रावण-मंदोदरी विवाह प्रसंग
---नरेन्द्र देवांगणगोस्वामी
तुलसीदास ने मंदोदरी के चरित्र-चित्रण में बडी़ निष्पक्ष एवं संतुलित दृष्टि का परिचय दिया है। यद्यपि मंदोदरी रावण की पत्नी थी, परंतु वह वैष्णव थी तथा उसकी गणना सन्नारियों में की गई। कहने का तात्पर्य यह कि मानसकार ने शत्रु पक्ष की स्त्री पात्र मंदोदरी के साथ पूर्ण न्याय किया है।
महाकवि तुलसी ने अपने मानस के बालखण्ड में ही [दोहा १७७ रावणोत्पत्ति की चर्चा के साथ] मंदोदरी का भी ज़िक्र किया है:
मय तनुजा मंदोदरि नामा।
परम सुंदरी नारि ललामा॥
सोइ मय दीन्हि रावनहि आनी।
होइहि जातु धानपति जानी॥
हरषित भयौ नारि भलि पाई।
पुनि दौ बधु बिआहेसि जाई॥
मंदोदरी मयदानव की पुत्री थी, अत्यंत सुंदर तथा बुद्धिमान थी, सुरुचिपूर्ण व्यक्तित्व की धनी थी, जिसका संकेत कवि ने अपने ‘ललाम’ शब्द के माध्यम से किया है। बौद्धिक प्रतिभा की धनी होने के कारण ही रावण ने उसे पटरानी बनाया था।
रावण-मंदोदरी विवाह:जब रावण पाताल लोक पहुंचा तो उसकी भेंट मयदानव से हुई। उस समय उसने मयदानव को अपनी पुत्री के साथ एक वन में विचरण करते देखा। उन्हें देखकर रावण को उनके बारे में जानने की उत्सुकता हुई। उसने मय तथा उसकी पुत्री दोनों के बारे में सविस्तार जानकारी प्राप्त की। मयदानव ने रावण को बताया कि यह कन्या उसकी ‘हेमा’ नामक अप्सरा पत्नी के गर्भ से उत्पन्न हुई है। उसने अपने दोनों पुत्रों- मायवी तथा दुन्दुभि के विषय में भी बताया, जो उस समय दानववंशीय योद्धाओं में विश्व विख्यात हो चुके थे।
कोई पिता अपनी पुत्री के लिए योग्य वर की खोज में इस तरह भटकता है कि जिस किसी से भी अपनी व्यग्रता प्रकट करने में संकोच का अनुभव नहीं करता। रावण ने अपना परिचय दिया तथा बताया कि वह पुलस्त्यकुलीन ऋषि विश्रवा का पुत्र तथा कुबेर का विमातृ भ्राता है।उसने बताया कि उसकी माता कैकसी राक्षस कुलीन है और वह राक्षसराज सुमाली की सुपुत्री है। वह लंकापुरी का अधिपति है उसका नाम पौलस्त्य रावण है।
मयदानव ने अग्नि को साक्षी रखकर विवाह संस्कार संपन्न करा दिया। मयदानव ने रावण कोसहर्ष जामाता स्वीकार करते हुए उसे अनेकानेक वस्तुएं उपहार तथा दहेज के रूप में प्रदान किया। उन अनकानेक वस्तुओं में मयदानव ने उसे ‘महाशक्ति’ नामक एक अस्त्र भी प्रदान किया जिसका प्रयोग उसने कालांतर में राम से युद्ध के समय किया।
रावण की माता कैकसी ने जब अपनी पुत्र वधु को देखा, जो अतीव सुंदरी तथा गुण संपन्ना थी तो बहुत प्रसन्न हुई। रावण ने इस प्रकार अनगिनत कन्याओं के साथ विवाह किया किंतु इन सबों में मयदानव की पुत्री मंदोदरी सर्वश्रेष्ठ थी।
******** [‘स्वतंत्र वार्ता’ से साभार]
बेहतरीन दृष्टांत की प्रस्तुति के लिये आभार.....
ReplyDeleteमय दानव की कथा अनेक प्रसंगों में सुनने में आती है। मय विलक्षण वास्तुकार और इन्जीनियर थे।
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा किया मन्दोदरी के बारे में यह बताकर।