लंका के विनाश का पूर्वाभास है
‘‘त्रिजटा का स्वप्न’’
- डॉ. विद्या विनोद गुप्त
त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन विवेका।।सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहिं सेइ करहु हित अपना।।सपने बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी।।खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।।एहि विधि सो दक्षिण दिसि जाई। लंका मनहुँ विभीषण पाई।।नगर फिरी रघुवीर दुहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई।।यह सपना मैं कहऊँ पुकारी। होइहिं सत्य गये दिन चारी।।
अशोक वाटिका में रावण की आज्ञा पाकर सीता की सुरक्षा में नियुक्त सभी राक्षसियाँ भयंकर रूप धारण कर जब सीता को भय दिखाने लगीं, तब उन सबकी नायिका त्रिजटा ने सबको एकत्रकर अपना सपना कह सुनाया। सपने में उसने भविष्यवाणी की कि -
1. सपने बानर लंका जारी।
2. जातु धान सेना सब मारी।
3. खर आरूढ़ नगन दससीसा।
4. मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।
5. एहि विधि सो दक्षिण दिसि जाई।
6. लंका मनहु विभीषण पाई।
7. नगर फिरी रघुवीर दुहाई।
8. तब प्रभु सीता बोलि पठाई।
9. यह सपना मैं कहहूँ पुकारी।
10. होइहिं सत्य गये दिन चारी।
त्रिजटा के इस सपने का तत्काल प्रभाव यह हुआ कि -
तासु वचन सुनि ते सब डरी। जनक सुता के चरनन्हिं परी।
सभी राक्षसियाँ सीता के प्रति सदय हो गई।
अलंघ्य सागर को सुगमता पूर्वक पार कर हनुमान लंका में प्रवेश कर गए थे और विभीषण की सहृदयता से वे अशोक वाटिका में अशोक वृक्ष पर छिप कर बैठे थे। सीता के प्रति रावण का क्रोध अपनी आँखों से देख चुके थे। त्रिजटा के स्वप्न की समस्त बातें सुन चुके थे। वहाँ एकांत होने पर हनुमान जी ने राम कथा सुनाई जिसे सुनकर सीता का दुख दूर हो गया और राम की अँगूठी प्राप्त कर सीता को विश्वास हो गया कि हनुमान राम दूत हैं, राम भक्त हैं -
रामचंद्र गुन बरनै लागा। सुनतेहि सीता कर दुख भागा।।
हनुमान जी को सीता ने अजर अमर होने का वरदान दिया और वे उनकी आज्ञा से फल खाने अशोक वाटिका गए। वहाँ उन्होंने फल तोड़े, वाटिका का विध्वंस किया, अक्षय कुमार और जांबमाली का संहार किया। मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र द्वारा हनुमान जी को बंदी बना लिया। उन्हें रावण के दरबार में लाया गया और दंडस्वरूप उनकी पूंछ जलाने की आज्ञा दी गई। परिणाम यह हुआ कि हनुमान ने पूरी लंका ही जला दी -
देह विशाल परम हरूआई। मंदिर ते मंदिर चढ़ धाई।/
जरइ नगर भा लोग विहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला।।
त्रिजटा के स्वप्न की पहली बात सत्य हो गई - ‘सपने बानर लंका जारी’; और हनुमान ने लंका को जलाकर भस्म कर दिया।
अशोक वाटिका में जांबमाली और अक्षय कुमार का वध हनुमान जी ने किया ही था। युद्ध में उन्होंने धूम्राक्ष अकंपन, देवांतक और निकुम्भ जैसे बलशाली विकट राक्षस योद्धाओं को यमलोक पहुँचाया। सुग्रीव ने कुम्भ , विरूपाक्ष और महोदर जैसे सेना प्रमुखों को मारा। अंगद ने बज्रद्रंष्ट, नरांतक, कंपन और महापार्श्व को मारा और नील ने प्रहस्त आदि राक्षसों का वध किया। लक्ष्मण ने अतिकाय और इंद्रजित मेघनाद का वध किया। इस तरह ‘जातुधान सेना सब मारी’ वाली दूसरी बात भी सत्य हुई।
तीसरी, चौथी और पाँचवी बात को राम ने सत्य कर दिखाया - युद्ध के मैदान में राम ने धनुष तान कर कुंभकर्ण पर एक साथ सौ बाण चलाए -
खैंचि धनुष सर शत संधाने। छूटे तीर शरीर समाने।।
और रावण का वध करते समय राम ने रावण पर इकतीस बाण छोडें -
खैंचि सरासन श्रवण लगि छोड़े सर इकतीस।।रघुनायक सायक चले मानहु काल फनीस।।
रावण के मारे जाने पर मंदोदरी राम की भगवत्ता को प्रकट करती हुई कहती है -
अहह नाथ रघुनाथ सम कृपा सिन्धु नहिं आन।जोगि वृंद दुर्लभ गति, तोहि दीन्हि भगवान।।
‘मुंडित सिर खंडित भुज बीसा’ होकर रावण के मरने के बाद लंका के राजा के रूप में विभीषण सिंहासनारूढ़ हुए -
तुरत चले कपि सुनि प्रभु वचना। कीन्हीं जाइ तिलक की रचना।।सादर सिंहासन बैठारी। तिलक सारि अस्तुति अनुसारी।।
इसके पूर्व भी जब विभीषण श्रीराम की शरण में पहुँचे थे तभी राम ने लंकेश के रूप में समुद्र जल से विभीषण का अभिषेक किया था -
जदपि सखा तव इच्छा नाहीं। मोर दरस अमोघ जग माहीं।।
- डॉ. विद्या विनोद गुप्त
त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन विवेका।।सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहिं सेइ करहु हित अपना।।सपने बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी।।खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।।एहि विधि सो दक्षिण दिसि जाई। लंका मनहुँ विभीषण पाई।।नगर फिरी रघुवीर दुहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई।।यह सपना मैं कहऊँ पुकारी। होइहिं सत्य गये दिन चारी।।
अशोक वाटिका में रावण की आज्ञा पाकर सीता की सुरक्षा में नियुक्त सभी राक्षसियाँ भयंकर रूप धारण कर जब सीता को भय दिखाने लगीं, तब उन सबकी नायिका त्रिजटा ने सबको एकत्रकर अपना सपना कह सुनाया। सपने में उसने भविष्यवाणी की कि -
1. सपने बानर लंका जारी।
2. जातु धान सेना सब मारी।
3. खर आरूढ़ नगन दससीसा।
4. मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।
5. एहि विधि सो दक्षिण दिसि जाई।
6. लंका मनहु विभीषण पाई।
7. नगर फिरी रघुवीर दुहाई।
8. तब प्रभु सीता बोलि पठाई।
9. यह सपना मैं कहहूँ पुकारी।
10. होइहिं सत्य गये दिन चारी।
त्रिजटा के इस सपने का तत्काल प्रभाव यह हुआ कि -
तासु वचन सुनि ते सब डरी। जनक सुता के चरनन्हिं परी।
सभी राक्षसियाँ सीता के प्रति सदय हो गई।
अलंघ्य सागर को सुगमता पूर्वक पार कर हनुमान लंका में प्रवेश कर गए थे और विभीषण की सहृदयता से वे अशोक वाटिका में अशोक वृक्ष पर छिप कर बैठे थे। सीता के प्रति रावण का क्रोध अपनी आँखों से देख चुके थे। त्रिजटा के स्वप्न की समस्त बातें सुन चुके थे। वहाँ एकांत होने पर हनुमान जी ने राम कथा सुनाई जिसे सुनकर सीता का दुख दूर हो गया और राम की अँगूठी प्राप्त कर सीता को विश्वास हो गया कि हनुमान राम दूत हैं, राम भक्त हैं -
रामचंद्र गुन बरनै लागा। सुनतेहि सीता कर दुख भागा।।
हनुमान जी को सीता ने अजर अमर होने का वरदान दिया और वे उनकी आज्ञा से फल खाने अशोक वाटिका गए। वहाँ उन्होंने फल तोड़े, वाटिका का विध्वंस किया, अक्षय कुमार और जांबमाली का संहार किया। मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र द्वारा हनुमान जी को बंदी बना लिया। उन्हें रावण के दरबार में लाया गया और दंडस्वरूप उनकी पूंछ जलाने की आज्ञा दी गई। परिणाम यह हुआ कि हनुमान ने पूरी लंका ही जला दी -
देह विशाल परम हरूआई। मंदिर ते मंदिर चढ़ धाई।/
जरइ नगर भा लोग विहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला।।
त्रिजटा के स्वप्न की पहली बात सत्य हो गई - ‘सपने बानर लंका जारी’; और हनुमान ने लंका को जलाकर भस्म कर दिया।
अशोक वाटिका में जांबमाली और अक्षय कुमार का वध हनुमान जी ने किया ही था। युद्ध में उन्होंने धूम्राक्ष अकंपन, देवांतक और निकुम्भ जैसे बलशाली विकट राक्षस योद्धाओं को यमलोक पहुँचाया। सुग्रीव ने कुम्भ , विरूपाक्ष और महोदर जैसे सेना प्रमुखों को मारा। अंगद ने बज्रद्रंष्ट, नरांतक, कंपन और महापार्श्व को मारा और नील ने प्रहस्त आदि राक्षसों का वध किया। लक्ष्मण ने अतिकाय और इंद्रजित मेघनाद का वध किया। इस तरह ‘जातुधान सेना सब मारी’ वाली दूसरी बात भी सत्य हुई।
तीसरी, चौथी और पाँचवी बात को राम ने सत्य कर दिखाया - युद्ध के मैदान में राम ने धनुष तान कर कुंभकर्ण पर एक साथ सौ बाण चलाए -
खैंचि धनुष सर शत संधाने। छूटे तीर शरीर समाने।।
और रावण का वध करते समय राम ने रावण पर इकतीस बाण छोडें -
खैंचि सरासन श्रवण लगि छोड़े सर इकतीस।।रघुनायक सायक चले मानहु काल फनीस।।
रावण के मारे जाने पर मंदोदरी राम की भगवत्ता को प्रकट करती हुई कहती है -
अहह नाथ रघुनाथ सम कृपा सिन्धु नहिं आन।जोगि वृंद दुर्लभ गति, तोहि दीन्हि भगवान।।
‘मुंडित सिर खंडित भुज बीसा’ होकर रावण के मरने के बाद लंका के राजा के रूप में विभीषण सिंहासनारूढ़ हुए -
तुरत चले कपि सुनि प्रभु वचना। कीन्हीं जाइ तिलक की रचना।।सादर सिंहासन बैठारी। तिलक सारि अस्तुति अनुसारी।।
इसके पूर्व भी जब विभीषण श्रीराम की शरण में पहुँचे थे तभी राम ने लंकेश के रूप में समुद्र जल से विभीषण का अभिषेक किया था -
जदपि सखा तव इच्छा नाहीं। मोर दरस अमोघ जग माहीं।।
अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन वृष्टि नभ भई अपारा।।
जो संपत्ति शिव रावनहिं दीन्हि दिये दस माथ।
सोइ संपदा विभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ।।
त्रिजटा के स्वप्न की यह बात भी सत्य हो गई कि ‘लंका मनहु विभीषण पाई’। श्रीराम की विजय पर समस्त ब्रह्मांड में राम की जय-जय की ध्वनि छा गई। प्रबल भुजदंडों वाले श्री रघुवीर की जयकार होने लगी। देवता और ऋषि मुनियों ने फूलों की वर्षा की तथा कहने लगे कृपालु की जय हो मुकुंद की जय जय।
तासु तेज समान प्रभु आनन। हरषे देखि शंभु चतुरानन।।
त्रिजटा के स्वप्न की यह बात भी सत्य हो गई कि ‘लंका मनहु विभीषण पाई’। श्रीराम की विजय पर समस्त ब्रह्मांड में राम की जय-जय की ध्वनि छा गई। प्रबल भुजदंडों वाले श्री रघुवीर की जयकार होने लगी। देवता और ऋषि मुनियों ने फूलों की वर्षा की तथा कहने लगे कृपालु की जय हो मुकुंद की जय जय।
तासु तेज समान प्रभु आनन। हरषे देखि शंभु चतुरानन।।
जय जय धुनि पूरी ब्रह्मंडा। जय रघुवीर प्रबल भुजदंडा।।
बरसहिं सुमन देव मुनि वृंदा। जय कृपाल जय जयति मुकुंदा।।
‘नगर फिरी रघुबीर दुहाई’ वाली बात भी सत्य चरितार्थ हुई। लंका विजय कर राम ने विभीषण को लंका का राजा घोषित किया और उनसे कहा कि सीता को अशोक वाटिका से पैदल ही आने दें जिससे समस्त वानर माता की तरह उनका दर्शन कर सकें -
कह रघुबीर कहा मम मानहु। सीताहिं सखा पयादे आनहु।।देखहुँ कपि जननी की नाईं। विहँसि कहा रघुनाथ गोसाईं।।
आने पर सीता की अग्नि परीक्षा हुई। अग्नि परीक्षा में सीता सफल हुईं । अग्निदेव प्रगट हुए और उनकी पवित्रता का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए राम को सौंप दिया -
श्रीखंड सम पावक प्रवेश कियो सुमरि प्रभु मैथिली।जय कोसलेस महेश बंदित चरन रति अति निर्मली।।
त्रिजटा का आठवाँ स्वप्न - ‘‘तब प्रभु सीता बोलि पठाई’’ वाली बात भी सत्य सिद्ध हुई .
जिस राम ने ताड़का नामक उस भयंकर राक्षसी का वध किया जो विश्वामित्र के यज्ञों की विध्वंसक थी। सुबाहु को मार गिराया। गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का उद्धार किया। जनकपुर में भगवान शंकर के पिनाक नामक धनुष को देखते-देखते तोड़ दिया और सीता से ब्याह किया। खरदूषण त्रिशरा सहित चौदह सहस्र राक्षसी सेना का एकाकी संहार किया। मायावी मारीच को मारा; निषादराज केवट, भीलनी शबरी, जटायु एवं विराध को तारा। जिन्होंने अपने नाम के प्रताप से समुद्र पर सेतु तैयार कर बानरी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई की और लंका पर विजय प्राप्त की। - उस राम के चरणों पर त्रिजटा की जैसी अनुपम भक्ति थी वैसी ही वह संभाषण में बड़ी चतुर थी और उसमें विवेक कूट-कूट कर भरा था। वह सीता को पुत्रीवत स्नेह और प्यार करती थी। जिस साहस और आत्म विश्वास के साथ अपने सपने की बात दृढ़तापूर्वक राक्षसी अनुचरियों के सामने बताई मानो वह भविष्यवाणी कर रही हो;। वास्तव में तो अपने स्वप्न की सत्यता निकट भविष्य में क्रियान्वित होने की बात कहने का उद्देश्य अशोक वाटिका में नियुक्त राक्षस नारियों के मनोबल को कम करना था जिसमें त्रिजटा को पूर्ण सफलता मिली।
‘नगर फिरी रघुबीर दुहाई’ वाली बात भी सत्य चरितार्थ हुई। लंका विजय कर राम ने विभीषण को लंका का राजा घोषित किया और उनसे कहा कि सीता को अशोक वाटिका से पैदल ही आने दें जिससे समस्त वानर माता की तरह उनका दर्शन कर सकें -
कह रघुबीर कहा मम मानहु। सीताहिं सखा पयादे आनहु।।देखहुँ कपि जननी की नाईं। विहँसि कहा रघुनाथ गोसाईं।।
आने पर सीता की अग्नि परीक्षा हुई। अग्नि परीक्षा में सीता सफल हुईं । अग्निदेव प्रगट हुए और उनकी पवित्रता का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए राम को सौंप दिया -
श्रीखंड सम पावक प्रवेश कियो सुमरि प्रभु मैथिली।जय कोसलेस महेश बंदित चरन रति अति निर्मली।।
त्रिजटा का आठवाँ स्वप्न - ‘‘तब प्रभु सीता बोलि पठाई’’ वाली बात भी सत्य सिद्ध हुई .
जिस राम ने ताड़का नामक उस भयंकर राक्षसी का वध किया जो विश्वामित्र के यज्ञों की विध्वंसक थी। सुबाहु को मार गिराया। गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का उद्धार किया। जनकपुर में भगवान शंकर के पिनाक नामक धनुष को देखते-देखते तोड़ दिया और सीता से ब्याह किया। खरदूषण त्रिशरा सहित चौदह सहस्र राक्षसी सेना का एकाकी संहार किया। मायावी मारीच को मारा; निषादराज केवट, भीलनी शबरी, जटायु एवं विराध को तारा। जिन्होंने अपने नाम के प्रताप से समुद्र पर सेतु तैयार कर बानरी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई की और लंका पर विजय प्राप्त की। - उस राम के चरणों पर त्रिजटा की जैसी अनुपम भक्ति थी वैसी ही वह संभाषण में बड़ी चतुर थी और उसमें विवेक कूट-कूट कर भरा था। वह सीता को पुत्रीवत स्नेह और प्यार करती थी। जिस साहस और आत्म विश्वास के साथ अपने सपने की बात दृढ़तापूर्वक राक्षसी अनुचरियों के सामने बताई मानो वह भविष्यवाणी कर रही हो;। वास्तव में तो अपने स्वप्न की सत्यता निकट भविष्य में क्रियान्वित होने की बात कहने का उद्देश्य अशोक वाटिका में नियुक्त राक्षस नारियों के मनोबल को कम करना था जिसमें त्रिजटा को पूर्ण सफलता मिली।
- डॉ. विद्या विनोद गुप्त
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